उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की रहने वाली शहजादी खान की कहानी एक ऐसे सपने की है, जो प्यार के धोखे में बदलकर एक भयावह हकीकत बन गई। सोशल मीडिया पर हुई एक दोस्ती ने उसे विदेश की चमक-धमक की ओर आकर्षित किया, लेकिन अंततः यह सफर उसे मौत की सजा तक ले गया।
सोशल मीडिया से शुरू हुई कहानी
साल 2020 में, शहजादी की मुलाकात सोशल मीडिया के माध्यम से आगरा के उजैर नामक युवक से हुई। दोनों के बीच बातचीत बढ़ी और नजदीकियां भी। उजैर ने शहजादी को उसके चेहरे के इलाज के बहाने आगरा बुलाया और फिर उसे अबू धाबी ले गया। वहां उसने शहजादी को अपने रिश्तेदार फैज और नाजिया के घर पर छोड़ दिया।
अबू धाबी में नई जिंदगी की शुरुआत
अबू धाबी में, नाजिया ने एक बेटे को जन्म दिया। नाजिया पेशे से प्रोफेसर थीं, इसलिए बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी शहजादी को सौंपी गई। शहजादी ने इस जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से निभाया।
दुर्भाग्यपूर्ण घटना और आरोप
जब बच्चा चार महीने का था, तो अचानक उसकी तबीयत बिगड़ी और गलत इलाज के कारण उसकी मौत हो गई। बच्चे के माता-पिता, फैज और नाजिया, ने शहजादी पर बच्चे की हत्या का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि शहजादी की लापरवाही के कारण उनके बच्चे की जान गई। शहजादी और उसके परिवार ने इस आरोप को सिरे से खारिज किया, लेकिन अबू धाबी की अदालत ने जांच के बाद शहजादी को दोषी ठहराया और उसे मौत की सजा सुनाई।
परिवार की पीड़ा और अपील
शहजादी के माता-पिता के लिए यह खबर किसी वज्रपात से कम नहीं थी। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भारत के मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रपति से अपनी बेटी को बचाने की गुहार लगाई। उनका कहना था कि उनकी बेटी निर्दोष है और उसे झूठे आरोप में फंसाया गया है।
आखिरी कॉल: एक बेटी की विदाई
14 फरवरी की रात, शहजादी ने अबू धाबी की जेल से अपने माता-पिता को फोन किया। उसने रोते हुए कहा, “पापा, ये मेरी आखिरी कॉल है। मुझे माफ कर देना, मैं आपके लिए कुछ नहीं कर पाई।” यह सुनकर उसके माता-पिता बिलख पड़े और अपनी बेटी को बचाने की आखिरी कोशिश में जुट गए।
फांसी की सजा और न्याय की उम्मीद
15 फरवरी की सुबह 5:30 बजे, शहजादी को अबू धाबी की जेल में फांसी दे दी गई। यह खबर सुनकर उसके परिवार और गांव में शोक की लहर दौड़ गई। परिवार ने भारत सरकार से अपील की थी कि वे अबू धाबी सरकार से बात करके शहजादी की सजा को माफ या कम करवाएं, लेकिन उनकी सभी कोशिशें नाकाम रहीं।
न्याय प्रणाली पर सवाल
इस मामले ने अंतर्राष्ट्रीय न्याय प्रणाली पर भी सवाल खड़े किए हैं। क्या शहजादी को निष्पक्ष सुनवाई मिली? क्या भारतीय दूतावास ने उसे पर्याप्त कानूनी सहायता प्रदान की? ये सवाल आज भी अनुत्तरित हैं।
सबक और सतर्कता की जरूरत
शहजादी की कहानी हमें यह सिखाती है कि सोशल मीडिया पर किसी अज्ञात व्यक्ति पर भरोसा करना कितना खतरनाक हो सकता है। विदेश जाने से पहले वहां की कानूनी प्रणाली, संस्कृति और संभावित खतरों के बारे में पूरी जानकारी लेना आवश्यक है। इसके अलावा, सरकारों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके नागरिक विदेशों में सुरक्षित रहें और उन्हें उचित कानूनी सहायता मिले।
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